अनमोल है आज़ादी




ढूंढता है हर शख्स एक साथ
जहाँ न हो उसे समझना समझाना
जहाँ न हो कोई भी अंतर्द्वद्व
स्वीकार हो उसकी हर सोच हर कर्म
न हो कोई भी जवाबतलबी
हो जाए गर अनजाने में कोई नासमझी
गलती नज़रअंदाज़ कर, उसके प्रयास पर ही
मिले उसे एक मीठी सी थपकी

स्वछंद उड़ सके अपनी उड़ानों में
भावनाओं में, परिकल्पनाओं में
बच सके वो विश्लेषणों से
और तार तार जहाँ न किया जाए 
उसका हर तराना, फ़साना, तरीका व
कृत्य करने का सलीका

जहाँ भी ये पैमाना  एकतरफा रहा
विफल उस रिश्ते का फलसफा रहा
फैलता रहा अवसाद उस रिश्ते का
समाज और परिवार में लावा बन
तो आज़ाद रहो और आज़ाद करो
हर रिश्ते को रिश्तों के बंधनों से
सिर्फ जियो और जीने दो से ऊपर उठ
इस दुनिया को आबाद करो
सांसारिक परिकल्पनाओं को अंजाम दो


डॉ अर्चना टंडन 


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