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छंटती धुंध

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ये रौनकें पल दो पल की जिन पर न्योछावर करते हो बेहिसाब दौलत क्या ख़ुशी दे पाएंगी तुम्हें जीवनपर्यन्त क्यों नहीं सोच पाते इस भेड़ चाल से जुदा क्यों नहीं लूट पाते हो सादगी में मज़ा पुराने दिनों को याद करो दाल रोटी स्कूल और पकड़न पकड़ा ई बस यही थी रोज की दिनचर्या बारिश में लेते थे भीग  और उड़ाते थे , ज़िन्दगी का असली मज़ा चिड़िया के घोंसले में देख चिड़िया के बच्चे दो रूपए के बाजरे के दानों के लिए दिन भर करते थे , माँ से मिन्नतें फिर आज क्यों हम चादर से बाहर पैर फैलाना चाहते हैं  दिखावे के दुनिया को सर नवाना चाहते हैं  क्यों नहीं समझ पाते इस संसार के दुःख का असली कारण इस दौड़ से परे हट , क्यों नहीं कर पाते  इसका निवारण समझना होगा कि प्यार मोहब्बत का कोई सानी नहीं और जो समझ गए , तो समझो  तुमसे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं  अर्चना टंडन

निर्वाण -निधि

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आग कब आग से बुझी है  नफरत कब नफरत से घटी है  गुरूर क्या कभी गुरूर से झुका है   एहसान क्या कभी एहसान से चुका है ? दुनिया के तिलिस्म को पहचान झूट की असली वजह जान सच की परत दर परत उघाड़  ज़िन्दगी की रूह को समझ क्या सच सच में है सच   सच को सच बनाने के लिए  कितने ही  झूटों का लिया गया है सहारा झूट को झूट साबित करने के लिए कई एक तथ्यों का घोंटा गया है गला  जब इन तथ्यों की रूह को जान जाएगा तब ही इस दुनिया की असलियत पहचान पाएगा दुनिया की असलियत जान खुद को समझ  तू भी मुस्कुराएगा  और दुनिया को भी मुस्कुराना सिखा जाएगा  अर्चना टंडन 

बरकते -एहसास

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बरकते -एहसास को ज़िंदा रखने में कामयाब कर ऐ खुदा दिला विश्वास कि ये एहसास   पाया नहीं कमाया जाता   है इरादों को सलामत रख बन्दे सच्चाई के रास्ते से इत्तेफ़ाक़ रख ख्वाहिशों को मंज़िल समझने की भूल में धोका और बेईमानी से वास्ता  क्यूँकर रख  डॉ अर्चना टंडन

खोज

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दुनिया की फ़िक़्र -ओ-तहक़ीक़ ने हमें दीवाना बना दिया खुदा का तलाश शुरू हुई फिर खुदा की तो उसे खुद में वा-बस्ता पाया ।। नज़रें मिलीं मिल के झुकीं शायद सब पढ़ लिया था उसने   देख रंगरेज़ का रंग पर्दा गिराना ही सही समझा था उसने दुःख क्या है कभी सोचा नहीं ख़ुशी को तो  हमेशा  क्षणिक ही समझा  आनी जानी ही है जब ईश्वर  की हर सौगात  तो छल प्रपंच को किया न कभी आत्मसात डॉ अर्चना टंडन 

इन्साफ खुदा का

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वो एक शख्स जो बोलता था हँसता मुस्कुराता था और संजीदा भी था बहुत उसे तुमने दीवाना , मस्ताना करार रिदा-ए-शब से लिपटा अज़ीयत दी तो बहुत पर वो चल पड़ा तुम्हारे द्वारा बुनी हुई रुतों की चाहत को नकार  तिलिस्म-ए -शहर को छोड़ सत्य की खोज में बिना रुके ,बिना तड़पे ,बिना बुझे अपनी ही दीवानगी का कवच ओढ़े मिले उसे और कई एहल-ए-वफा उस राह पर कि जिन्हें गुजरे-राहे-वफ़ा में वो ढूंढता था बहुत आज वो बना हुआ है कई बुझी नज़रों की नज़र कि जिसे तुमने  गिराया था कभी नज़रों से बहुत डॉ अर्चना टंडन

अपनी अपनी सीरत

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वो देखो वो देखो , मोर कैसे नाच रहा चितचोर देखो तो , दुबका बैठा है उल्लू  है बुद्धिमान बहुत  पर है बड़ा ही निठल्लू फुदकती हुई सात बहनों को भी देख रही है इक सूरत हर सूरत की अपनी अपनी सीरत वो देखो मर्सीडीज कोई उसे देख हुआ स्टैंड एट इज़ छोटी सी नैनो भी तो है किसी की पसंद जिसकी भी है उसको देती है आनंद ऑडी ,फोर्ड ,टोयोटा मत देखो किसने क्या है समेटा इन सबको भी पहचान रही  परिस्थितियों के हिसाब से हर सूरत  हर सूरत की अपनी अपनी सीरत किसी को भाए चटक रंग तो किसी को पसंद आए रास्ते तंग   किसी ने बनवाईं ऊँची मेहराबें तो किसी ने गोल गुम्बद और दीवारें चमड़े का बीन बैग , केन का सोफा दरी ,चटाई ,कारपेट या हो झूला कहीं पर तो बिखेर रहा छठा गाँव का इंटीरियर तो कहीं पर घर कि शोभा बढ़ा रहा विक्टोरियन फर्नीचर   सजा रही है इन्हें भी अपने ही हिसाब से हर सूरत  हर सूरत की अपनी अपनी सीरत मैं तो लेप्रोस्कोपी से निकालूँगा बड़े से बड़ा मायोमा मैं निकालूँगा इसे वेजाइनली और देखना फिर तुम मेरी कारिगरी मैं निकालूँगा इसे एबडॉमिनली टाँ...

कौन सा गीत सुनाऊँ ?

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किस्से हज़ार हैं झोली में मेरी बताओ तो कौन सा सुनाऊँ दर्द का ख़ुशी का गम का गीत कौन सा  मैं  तुम्हे सुनाऊँ गम सिखा गया पाठ नया फिर क्यों कर पछताऊं ख़ुशी के रूपहले रंग में रंगी क्यों न डूब मैं सुकून पाऊँ अर्चना टंडन 

फिर गूंजे शेर

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दगा कहाँ दिल की बानगी है ये तो दिमाग के किस्से हैं जो किस्से दिलो दिमाग के हैं तो समझो तैक -ऐ - हिकमह हैं ऐसी ज़रूरतों का क्या फायदा  कि जिन्हें पाल तुम बेनक़ाब हुए सौदेबाजी नहीं चलती इश्क़ में न ही ये मोहताज है रिश्वत की किस्मत की तरह है इसकी कहानी लिख के आती है खुदा की जुबानी अर्चना टंडन

दिल से

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उसे इक ख्वाब सा छिपा रक्खा था सैलाब को उफनने से बचा रक्खा था इक अरमान जो सदियों से सलाखों में था कैद आज न जाने क्यूं उसने बेताब सा बना रक्खा था रूठने मनाने के सिलसिले ने जिला रखा है गिरते संभलते क़दमों ने संभाल रखा है   होती एकसार जो अगर ज़िन्दगी तो नीरसता से सराबोर रहती हर ख़ुशी   दुश्मनी से न रहा कभी वास्ता दोस्ती को भी कमजोरी न समझा कभी   मतभेद तो दर्शाया खुल कर सदा  मनभेद की मंशा न रही कभी  साथ कहाँ कभी किसी का किसी ने दिया ये तो देने लेने का सिलसिला  ईश्वर ने ही तय किया   भले का हमेशा भला  और    बुरे का अंजाम बुरा ही हुआ  कफ़न की खातिर कहाँ है ये सफ़र  ये तो ज़िन्दगी को समझने की है एक डगर खुद को समझ खुद को पाने की है एक दास्ताँ  उसे  ही पाने  को  बढ़ रहा ये कारवाँ अर्चना टंडन

कीमत

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ये कलयुग है  यहाँ किसी की कीमत  न आँकना जनाजे की भीड़ देख कर मेलों के लिए  खेलों के लिए उत्सवों के लिए जनाजों के लिए  यहाँ भीड़ खरीदी जाती है  कीमत ही आंकनी है तो दुआओं में उठे हाथ और झरते हुए आंसू गिनना मातम का आलम परखना  भीड़ तो याकूब के जनाज़े में भी बेहिसाब थी  पर कलाम को  विदाई हर ह्रदय दे रहा था   अर्चना टंडन

ये व्यापार कब तक ?

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व्यापार शिक्षा का   व्यापार देह का   व्यापार भ्रूण हत्या का   किसकी देन है ? व्यापार प्रायोजित ख़बरों का   व्यापार प्रायोजित पोडियम का व्यापार प्रायोजित वक्ताओं का   किसकी देन है ? व्यापार प्रायोजित स्टेज का   व्यापार प्रायोजित मेलों का व्यापार प्रायोजित खेलों का किसकी देन है ? ये खेल है एक   प्रायोजित खेल   पैसे का ,सिस्टम का ईमान धर्म को ताक पर रख आगे बढ़ने का   आप भी खेल सकते हैं ये खेल   शामिल हो सकते हैं इसमें   बोली लगाइये   फायदा दिलाइए   यहाँ सिर्फ डॉलर चलता है   कमज़ोर को लाचार दिखा   कमज़ोर का ही शोषण होता है यहाँ कमजोरी   आपका उसूलों पर अडिग रहना है   आपका शोषण के खिलाफ खड़े होना है आपका भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाना है   आपके वोटों की कीमत न होना है । यहाँ सिर्फ वोट और नोट बिकता है   यहाँ व्यापार वोटों और नोटों का होता है ...

आज फिर हुआ है सवेरा

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चहुँ ओर है फैला उजियारा पत्तो पर कोपलों पर दूब पर मुंडेरों पर बयार में थिरकती टहनियों पर औऱ सिमट गया है उदासीन अँधेरा अपने ही पहलू में सिमटकर कहीं खुद अपना अस्तित्व मिटाकर आज फिर  हुआ   है   सवेरा  । अर्चना टंडन

जीने कि राह

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छोटे छोटे सपने छोटे छोटे ध्येय अस्तित्व को मेरे मिटने  न दें नित नए देखूं , देख देख सोचूँ सोच समझ फिर दूं उन्हे विस्तार होने पर भी पूरे कभी , इत्मिनान न मैं पाऊँ अधूरे रहने का भी कभी , मलाल न मैं  मनाऊँ उन्हें ज़िन्दगी का  हिस्सा मान  जिंदादिली अपनी  बढ़ाती जाऊं  आरजूओं  के अपने एहसास पर ही क्यूँ न , जियूं  और  मुस्कुराऊँ अर्चना टंडन

SYNCHRONISATION WITH THE RESULTANT REVERBERATIONS

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Unknown to each other Nervously march they did  together Moving as they did Thoughts synchronized But not organised They taught each other As and where they went wrong To synchronise their rhythm And become progressively strong   Slowly their dreams Embarked on a flight As efforts were put in With all their might They knew not how They balanced the bid Gaining momentum at times Stumble too they did   Only to be caught by An unknown hand in mid air Helping them sustain The rhythm as a pair With synchronised vibrations and galloping heart They watched their world reverberate The fusion was apparent Which helped them amalgamate.   The feelings of love and strength Rejuvenated them to make them smile Feelings of doom and desertion were left behind That reduced the suffering and made them all the more versatile Dissipated were the apprehensions Gone were the thoughts of betrayal Their fantasies saw ...