इन्साफ खुदा का



वो एक शख्स जो बोलता था

हँसता मुस्कुराता था और संजीदा भी था बहुत

उसे तुमने दीवाना , मस्ताना करार

रिदा-ए-शब से लिपटा अज़ीयत दी तो बहुत


पर वो चल पड़ा

तुम्हारे द्वारा बुनी हुई रुतों की चाहत को नकार 

तिलिस्म-ए -शहर को छोड़

सत्य की खोज में

बिना रुके ,बिना तड़पे ,बिना बुझे

अपनी ही दीवानगी का कवच ओढ़े


मिले उसे और कई एहल-ए-वफा उस राह पर

कि जिन्हें गुजरे-राहे-वफ़ा में वो ढूंढता था बहुत

आज वो बना हुआ है कई बुझी नज़रों की नज़र

कि जिसे तुमने  गिराया था कभी नज़रों से बहुत


डॉ अर्चना टंडन




Comments

Popular posts from this blog

खुद्दारी और हक़

VIOLENCE AGAINST DOCTORS

IDENTITY