आज फिर हुआ है सवेरा
चहुँ ओर है फैला उजियारा
पत्तो पर कोपलों पर
दूब पर मुंडेरों पर
बयार में थिरकती टहनियों पर
औऱ सिमट गया है
उदासीन अँधेरा अपने ही पहलू में
सिमटकर कहीं
खुद अपना अस्तित्व मिटाकर
आज फिर हुआ है सवेरा ।
अर्चना टंडन
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