कीमत
ये कलयुग है
यहाँ किसी की कीमत
न आँकना जनाजे की भीड़ देख कर
मेलों के लिए
खेलों के लिए
उत्सवों के लिए
जनाजों के लिए
यहाँ भीड़ खरीदी जाती है
कीमत ही आंकनी है तो
दुआओं में उठे हाथ और
झरते हुए आंसू गिनना
मातम का आलम परखना
भीड़ तो याकूब के जनाज़े में भी बेहिसाब थी
पर कलाम को विदाई हर ह्रदय दे रहा था
अर्चना टंडन
Comments