परिवर्तन
सोचो अगर परिवर्तन का नियम न होता तो क्या होता
अंधियारी रात के बाद सुनहरी सुबह न होती
दुख के बादलों के बीच सुख की रुपहली रोशनी न दीखती
नौनिहाल की अवस्था वृद्धावस्था की बुद्धिमत्ता कैसे प्राप्त करती
ये तो प्रकृति का नियम है एक संतुलन कायम रखने का
हर प्रकार को एक अद्भुत आकार देने का
उत्क्रमणीय या अनुत्क्रमणीय तरीके से अवस्था में बदलाव लाने का
ज़िन्दगी के द्वी आयामी स्वरूप से सामंजस्य बिठाने का
इसलिए कहती हूँ बदलाव के नियम में तुम भी ढल जाओ
रोते को हँसाओ,गर्त में डूबते हुए को बचाओ
स्याह सामाजिक कुरीतियों के दंश को मिटाते रहो
परिवर्तन ला सामाजिक उत्थान का बीज बोते रहो
डॉ अर्चना टंडन
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