प्रिय तुम मेरे



प्रिय हो तुम प्रियवर मेरे
तुम्हारे अपने ही स्वरूप में
जैसे हो वैसे ही सदा साथ चलते चलो
विस्तार लिए अपने विवेकी अभिरूप में

कंधे से कंधा मिला कर चलने को 
मेरा अधिकार मानने वाले
मेरी कल्पनाओं को पंख लगा
आज़ादी को मेरी विस्तार देने वाले

मेरे हर तथ्य के तुम वास्तविक सत्य हो
प्रियतम मेरे, तुम तुम हो इसलिए ही तो प्रिय हो

© डॉ अर्चना टंडन

Comments

Unknown said…
Too good..truely described the meaning of such relationship.. Loved it 😍

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