Posts

केंद्रित मन

Image
कभी कलम बहती थी विकेन्द्रित मन को केंद्रित करने के लिए आज जब कोई ख्याल आता है ढल नही पाता वो किसी भी रूप में दो शब्द लिखती हूँ और विश्लेषण में खो जाती हूँ अनेकार्थता का बोध रंगों का गुबार खड़ा कर देता है जो बहा ले जाता है गुबार को, घेराव को, अंतर्वेदना को और ला देता है एक ठहराव पर ये कहना गलत होगा कि कविता अधूरी रह जाती है या मिटा दी जाती है वो तो अंदर ही अंदर कहीं झंकृत कर जाती है मन को अलंकृत कर जाती है तन को अस्पष्टता की स्पष्टता के बोध से डॉ अर्चना टंडन

मुक़द्दर

Image
कहानी हूँ मैं कहानी हो तुम कहानी है वह ऐसी जिसका अंत है तुम चंद्रकांता मैं कबीर का दोहा और वह एक कविता तुम कई कड़ियों का कथानक मैं लघुकथा वह उपन्यास तुम मनोरंजन युक्त सम्पूर्ण कथानक मैं उपदेशगर्भित डॉक्यूमेंट्री वह सारयुक्त लघुफिल्म सब अपना रूप लिए अपना रूप संजोए अपने अपने दायरे में चिर परिचित प्रारूप में चमकते दमकते इस जीवन के अनजान किन्तु तयशुदा रास्ते पर इंगित हो रहे हैं शायद तुम मील का पत्थर बनो और मैं नींव का पत्थर और वो हीरा बन जाए पर इस करवट बदलते संसार में जो बात तयशुदा है, वह है तुम्हारा अंत, मेरा अन्त और उसका अंत फिर ये कैसा लगाव और कैसा अलगाव कैसा अनुराग और कैसा विराग कैसा राग और कैसा द्वेष? डॉ अर्चना टंडन

A poetic Deliverance

Image
Politically correct moves Religiously correct moves Socially correct moves Are not moves But are stepping stones That ultimately tame one For a never ending circle of a game Of no beginning and of no end Until the centrifugal force Overpowers the centripetal force To pull one out Before one succumbs to the blackout And guides one on to A tangential pathway of Self evaluation, and self building The ultimate pathway of liberation Salvation and emancipation Dr Archana Tandon

आँचल की प्यास

Image
जर्जर तार-तार होने का एहसास आज देखा एक छोटी सी तमन्ना को टूटते आज देखा एक माँ के आंचल की प्यास का दर्द आज देखा दुर्बलता के एहसास के मर्म को आज समझा ये कैसा प्यार, ये कैसा दर्द ये कैसा लगाव, ये कैसा घेराव था जो जर्जर शरीर को एक आखरी झलक के लिए उद्वेलित कर रहा था जर्जर शरीर उठा था एक आखरी झलक सजोने धड़ाम आवाज के साथ बिखर गईं उम्मीदें दर्द की चीखें भी न थाम सकीं जीवन के झंझावाती चक्रों को दर्द ,कराहट, चोट से सूजा शरीर और आंख सबको मात दे बहा ले गया एक खामोशी का लिबास जो समेटे था अपने अंदर एक अतृप्त सैलाब डॉ अर्चना टंडन

कुशल राजनीतिज्ञ की परिभाषा

Image
उसका वो चिर परिचित अंदाज़ चंद लफ़्ज़ों में कुछ को विपरीतार्थक प्रतीक होने वाला संवाद   अत्यंत सार्थक हुआ करता था उसके थमे से दीखने वाले विचार   हमेशा गतिशील ही रहे फैलाव लिए हुए किन्तु व्यवस्थित रहे राह वो अपनी चलता रहा आसरा सहारा देता हुआ बिना डगमगाए वो दूसरों   को भी स्थिर करता गया इस पाट पर पैर जमा, उस पाट को भी दायरे में रखना एक कुशल राजनीति का द्योतक मात्र था राजनीति जो प्रगतिशील थी राजनीति जो उदीयमान थी राजनीति जो जोड़वाली थी राजनीति जो चारित्रिक विश्लेषण से परे थी राजनीति जो विकासशील थी पाट को पाट से जोड़ती एक अनुबंध थी सूर्योदय से सूर्यास्त तक   आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन के लिए प्रतिबद्ध थी डॉ अर्चना टंडन

उसका अदालती फरमान

Image
आज हम कटघरे में थे शहर उसका, कचहरी उसकी क़ाज़ी उसका, मुख्तार उसका अपना मुख्तार भी कहाँ अपना था मुद्दई भी वो था और कानून भी उसका तो गुनाहगार कौन होता फैसला भी तुरंत आ गया और सज़ा भी मुक़र्रर हुई तयशुदा घेराव को अंजाम देती हुई और हम ने इसे एक ईश्वरीय आपदा मान कर स्वीकार कर लिया और खुद को खुद के आगोश में भर लिया डॉ अर्चना टंडन

साझा दर्शन

Image
आओ आज एक आज़माइश करें हम अपने अपने किरदार अदल-बदल कर देखें हम कुछ पल मैं तुम्हारे जिस्म में ठहरूँ कुछ पल तुम मेरे जिस्म में तब शायद मैं तुम्हारे लफ्ज़ समझ सकूँ और तुम मेरे समझ सकूँ तुम्हारे बहाव के हर कोण को और तुम मेरे झरने के हर तेज को क्योंकि दैहिक स्वरूप तो दोनों का ही इस वैश्विक विस्तार की ही देन है फिर शायद एक आत्मिक मिलन कायम हो सके मेरे तुम्हारे बीच जो तुम्हारे मेरे विचारों की लक्ष्मण-रेखाओं को समझ सके उन्हें बिना नकारे उसका अधूरा हिस्सा पूर्ण कर सके डॉ अर्चना टंडन

क्षितिज के करीब !!

Image
आज ज़िन्दगी को कुछ और करीब से देखा अस्तित्व को अपने कुछ और पहचाना ज़िन्दगी दूसरों से कहाँ, खुद से है खुद को आगोश में भर वीरानों में भी खुद को ही तलाशने से है दूसरे मजबूर और बंधे हैं अपने दायरों में तुम क्यों सीमित करो दायरा अपना जिस्म के जुड़ाव हैं और उससे जुड़े कष्ट है आत्मा तो आज़ाद है जिंदगी तो केवल नाटक है एक जहाँ दिखावा है, मुखौटे हैं, आवरण हैं, रण हैं, तरीके हैं बिना अपना पराया समझे सीखकर पार लगने के डॉ अर्चना टंडन 

आगमन वानप्रस्थ का

Image
आज वो कुछ जुदा से थे खफा तो नहीं पर हाँ  कुछ खामोश से थे शीर्षस्थ हो के भी  कुछ अपदस्त से थे जो हमेशा प्रतीत हुए मदमस्त से न जाने आज क्यों वो अपनी चिरपरिचित अदा को कह अलविदा दुनिया के शोर के बीच कुछ गुमसुम से थे शायद ये ज़मीर बेच मेल मिलाप का सलीका रंगरोगन में लिपटा किन्तु  कालिख लिए अंतर्मन को दर्शाता चेहरा अस्मत बेच उस पर चढ़ा रुआब शानोशौकत का आलम देख  उसकी असलितत पहचान वो अंदर से कहीं दहल गए थे सांसारिकता के इस भीषण रूप को आत्मसात न कर पाने के बोध से बिना किसी दुर्भाव से साँसारिक जुड़ाव से मुक्त हो आत्मबल के बोध से घिरे खुद को तृप्त पा रहे थे  डॉ अर्चना टंडन 

निचोड़

Image
आज की रचना (समर्पित हमारे मेडिकल कॉलेज के Batch Reunion को)   परवान चढ़ा सठियाना तो फिर बचपन में पहुँच गए हम यादों में खो कर फिर मुस्कुरा दिए हम ये मुस्कान बिन मकसद थी सबको मोहती ये अंतर्मन की थी सम्मोहन का दायरा विशाल था,  दिशाहीन नहीं अपितु एक फैलाव था  प्रेम का, उपासना का, शुक्राने का तुम्हारे मेरे एकाकी अस्तित्व का तुम्हारी मेरी आराधना का, अर्चना का अनुभूति का, तृप्ति का, मुक्ति का एहसास लिए जीवन का सार था डॉ अर्चना टंडन 

पुनर्जन्म

Image
शोला मत रक्खा करो सीने में दबा कर लावा बन जाएगा और फिर जो फूटेगा तो तबाही ही तबाही मचाएगा जलने दो शोलों को दहकने दो, राख बनने दो उन्हें राख होंगे तो पुनर्जन्म होगा और पुनर्जन्म होगा तो नया अवतार और खूबसूरत होगा !! डॉ अर्चना टंडन 

Truth

Image
Does truth exist Or is it that  The only truth is Existence of ambiguity ? What is true today  Becomes false tomorrow  And what was non existent yesterday Comes into existence today to perish tomorrow Is truth as temporary  As a fad Or is it as permanent as God ? God the goodness in you and me God the "our own truth" in you and me God the honesty in you and me God the survivor in you and me Dr Archana Tandon

गुनगुनाता अंतर्मन

Image
मेरी ख़ामोशी उनकी ख़ामोशी  से बातें करती है उनके अधरों पे आए अनकहे बोलों से दिल की तड़पन कुछ कम होती है मुस्कुराहट से इज़हार होता है  इक तराना स्वरुप लेता है  और फ़साना बन खामोशी को कहीं चीरता है  आलिंगन आगोश  की चाह को  नैनों की बौछार भिगोती है  अतृप्त मन अन्दर कहीं फिर आत्मा को टटोलता है  और  एकाकी अंतर्मन  एक बार फिर अपने में मस्त हो  श्रावणी झूला झूल गीत एक नया गुनगुनाता है  डॉ अर्चना टंडन 

वजूद

Image
ऐसे भी हैं कुछ वजूद कि वजूद है उनका तो कश्मकश है तीर से भरा उनका हर तरकश है मिटटी बनने से पहले बादशाहत की तमन्ना नहीं बस दुनिया से जालसाजी हटाने की अकुलाहट है माना कि मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है तंज़ भी बरसते हैं कि मक़सद दिशाहीन है पर रुकता नहीं है सैलाब उनका क्योंकि लावा उनके अंदर का भले ही आकारहीन हो धरती के अंदर होने वाली खलबली का द्योतक है वसुंधरा की काया पर मानवीय प्रहार द्वारा परिलक्षित हर असंतुलन का पूरक है डॉ अर्चना टंडन 

Evolution of Emotions

Image
It was in higher secondary When Mills and Boon did cast its spell Of an imaginary love, Into which we didn’t have the courage to delve Tall Dark and Handsome Were the criteria then Not many could fit The criteria well Those that did fit in the description Usually did not match our imaginary vision Studies being then the top priority We dived into it to get rid of this insanity We cleared the PMT in first attempt flashily And looked towards the future anxiously ​​First and second years Were lost in acclimatization The third year marked The re-emergence of hormonal emotions   Coyly the dreamy ones Expectantly gazed at the other gender As they bunked clinical postings And hither and thither they wandered Some found their heart throbs When confronted with proposals And some lost them Courtesy, orthodox societal circles Friendships were enjoyable Relationships out of question For studies remained a priority...

बुनियादी सच्चाईयाँ

Image
एक वो दिन थे जब हम प्रतिद्वंदी थे एक एक नंबर के लिए लड़ा करते थे एक आज का दिन है कि हम एक दूसरे की सफलता पर इतरा रहे हैं, नाच गा रहे हैं कुछ होते थे ज्ञान के भण्डार कुछ दोस्ती की मिसाल कुछ खुद में सीमित तो कुछ का दायरा असीमित कुछ प्रेम पुजारी कुछ ब्रम्हचर्य के स्वामी ध्येय सबका एक था अपनी पसंद की speciality में महारथ हासिल करना ज़िन्दगी की सच्चाइयों से अनभिज्ञ हम खुद स्वयंभू हुआ करते थे कभी सहमे से कभी आत्मविश्वास से भरे कभी तनहा, कभी झुण्ड में कभी ग़मगीन, कभी ठहाके मारते हम मदमस्त विचरा करते थे कॉफी हाउस, लाइब्रेरी कॉलेज के सामने की मंगौड़ों की दुकान कुछ के मिलने के तो कुछ के ख्याली पुलावों को परवान चढाने के अड्डे हुआ करते थे मेडिकल के विषमताओं से भरे जीवन के लिए मधुशाला के समकक्ष हुआ करते थे और आज जब तीस साल बाद मिले हैं तो हमें एक दुसरे पर गर्व है ये रीयूनियन हमारी सफलताओं का पर्व है इन तीस सालों की दूरी ने हमें करीब ला दिया या व्हाट्सएप्प और फेसबुक ने अपना करतब दिखा दिया ये तो नहीं कह सकती पर हाँ, विश्...

We the 1978 NSCBians

Image
The 1978 NSCB batch Never did get a parallel match As 50 girls of the batch by their ability Proved the reservation policy’s futility Malviya Sir was one of our anatomy professors Who walked in the dissection hall always with a scissors Dr Guha was out always to set an artistic trend Dr Malhotra our HOD was the strictest friend Dr Verma knew his subject well So could efficiently cast a scholarly spell The mathematical subject physiology Brings back memories flooding At the sight of blood Of a friend fainting It was funny to see boys Requesting the girls for pithing As they went about advising Though Guyton was one of Favourite books Ganong did provide me With a good read on few topics Pathology never did interest me Except for reading Boyd like a novel Though Robins always did provide me With the better option PSM the happening subject of today Was the dullest during our times Except for the lorry rides with batch...