मुक़द्दर
कहानी हूँ मैं
कहानी हो तुम
कहानी है वह
ऐसी जिसका अंत है
तुम चंद्रकांता
मैं कबीर का दोहा
और वह एक कविता
तुम कई कड़ियों का कथानक
मैं लघुकथा
वह उपन्यास
तुम मनोरंजन युक्त सम्पूर्ण कथानक
मैं उपदेशगर्भित डॉक्यूमेंट्री
वह सारयुक्त लघुफिल्म
सब अपना रूप लिए
अपना रूप संजोए
अपने अपने दायरे में
चिर परिचित प्रारूप में
चमकते दमकते
इस जीवन के अनजान
किन्तु तयशुदा रास्ते पर
इंगित हो रहे हैं
शायद तुम मील का पत्थर बनो
और मैं नींव का पत्थर
और वो हीरा बन जाए
पर इस करवट बदलते संसार में
जो बात तयशुदा है, वह है
तुम्हारा अंत, मेरा अन्त और उसका अंत
फिर ये
कैसा लगाव और कैसा अलगाव
कैसा अनुराग और कैसा विराग
कैसा राग और कैसा द्वेष?
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