आँचल की प्यास


जर्जर तार-तार होने का एहसास
आज देखा
एक छोटी सी तमन्ना को टूटते
आज देखा
एक माँ के आंचल की प्यास का दर्द
आज देखा
दुर्बलता के एहसास के मर्म को
आज समझा

ये कैसा प्यार, ये कैसा दर्द
ये कैसा लगाव, ये कैसा घेराव था
जो जर्जर शरीर को एक
आखरी झलक के लिए उद्वेलित कर रहा था

जर्जर शरीर उठा था एक आखरी झलक सजोने
धड़ाम आवाज के साथ बिखर गईं उम्मीदें
दर्द की चीखें भी न थाम सकीं
जीवन के झंझावाती चक्रों को
दर्द ,कराहट, चोट से सूजा शरीर और आंख
सबको मात दे बहा ले गया
एक खामोशी का लिबास
जो समेटे था अपने अंदर
एक अतृप्त सैलाब

डॉ अर्चना टंडन

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