गुनगुनाता अंतर्मन




मेरी ख़ामोशी उनकी ख़ामोशी  से बातें करती है
उनके अधरों पे आए अनकहे बोलों से
दिल की तड़पन कुछ कम होती है
मुस्कुराहट से इज़हार होता है 
इक तराना स्वरुप लेता है 
और फ़साना बन खामोशी को कहीं चीरता है 
आलिंगन आगोश  की चाह को 
नैनों की बौछार भिगोती है 
अतृप्त मन अन्दर कहीं
फिर आत्मा को टटोलता है 
और  एकाकी अंतर्मन 
एक बार फिर अपने में मस्त हो 
श्रावणी झूला झूल
गीत एक नया गुनगुनाता है 

डॉ अर्चना टंडन 

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