साझा दर्शन



आओ आज एक आज़माइश करें हम
अपने अपने किरदार अदल-बदल कर देखें हम
कुछ पल मैं तुम्हारे जिस्म में ठहरूँ
कुछ पल तुम मेरे जिस्म में
तब शायद मैं
तुम्हारे लफ्ज़ समझ सकूँ
और तुम मेरे
समझ सकूँ तुम्हारे बहाव के हर कोण को
और तुम मेरे झरने के हर तेज को
क्योंकि दैहिक स्वरूप तो दोनों का ही
इस वैश्विक विस्तार की ही देन है
फिर शायद एक आत्मिक मिलन कायम हो सके
मेरे तुम्हारे बीच
जो तुम्हारे मेरे विचारों की
लक्ष्मण-रेखाओं को समझ सके
उन्हें बिना नकारे
उसका अधूरा हिस्सा
पूर्ण कर सके

डॉ अर्चना टंडन




Comments

Popular posts from this blog

खुद्दारी और हक़

VIOLENCE AGAINST DOCTORS

IDENTITY