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सुरक्षाकवच की महत्ता

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  हक़ीक़तों और सपनों  की उधेड़बुन में खोई सपनों को उधेडूँ या  हक़ीक़तों को बुनूँ  ऐसी ही पहेली में गुम चली जा रही थी कि कोविड- १९ ने मानों विराम लगा दिया उधेड़बुन और ऊहापोह की स्थिति से उभार ज़िन्दगी के सही मायनों का दर्पण दिखा दिया चलें हक़ीक़तों का सामना वैक्सीन का सुरक्षा कवच ओढ़  सपनों को वैज्ञानिक विधि से  साकार कर करें विज्ञान की महत्ता को स्वीकार  हक़ीक़तों को अंगीकृत कर ज़िन्दगी का ताना-बाना बुनें डॉ अर्चना टंडन

वह नौजवान

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आँखों में सपने लिए फौलाद सा निश्चय किये जो चल दिया  आत्मविश्वास से लबरेज़ नौजवानी के जोश में उसे न थी परवाह  ज़माने के फरेब से वो तो चला था  इससे बचते बचाते अरमानों को यथार्थ में बदलने अस्तित्व का गणित  गुणा-भाग, जोड़-घटाना समझने में वक़्त नहीं लगा उसे वास्तविकता और पारदर्शिता का जुड़ाव लिये  भेद जब समझ आया उसे तो जीवन रूपी दरिया पार करना लगा भाने उसे अब वो नौजवान आत्मविश्वास से लबरेज़ निपुण मल्लाह बन प्रगति पथ का पथिक था ©डॉ अर्चना टंडन

"Home" A poem by Dr Archana Tandon

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As I lay with my head on her lap With her fingers easing out my afflictions I felt myself emerging from the tormenting trap Of anguish, sufferings and botherations Embraced in her genuine warmth  I found myself unfolding and at home  Affectionately easing out and giving in To the simplistic behaviour of my mother's clone Indeed she was a God sent zealous fairy To create for me heaven on this earth By providing a reclusive space for my soul She did save me from the life's treacherous haul Dr Archana Tandon

"मृत्यु से भय कैसा" डॉ अर्चना टंडन द्वारा रचित कविता

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खफा होने का उसका सिलसिला जारी रहा निरंतर मनाने का क्रम भी चलता रहा समानांतर विमुख कौन कभी किसी और से हुआ कोई जब भी हुआ तो खुद से खुद की ही बढ़ी दूरी हारा भी तो खुद से और जीता भी तो खुद से रूठा भी तो स्वयं से और मनाया भी तो स्वयं को ही दूसरों में उसने अपना प्रतिबिम्ब निहारना चाहा जब भी आज़ादी पसंद वो भला क्यों चाहता रखना किसी को क़ैद में अपनी अंतर्वेदना से ग्रसित उसने आज़ाद तो करना चाहा खुद को ही स्वीकार्य हुआ जब उसको अपने ही द्वारा बनाया गया परिवेश तब जीवन में कहां रह गया किसी भी तरह का क्लेश जीवन के इस छोर से उस छोर तक साथ है गर जो गूढ़ अध्ययन द्वारा स्व-सृजित प्रतिकृति तो मृत्यु से भय कैसा, बढ़े चलो परिकल्पित आकृति से आज़ाद होकर ही तो मिलेगी असली मुक्ति © डॉ अर्चना टंडन

"उमड़ते जज़्बात" डॉ अर्चना टंडन द्वारा रचित एक कविता

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दिल के जज़्बातों को पन्ने पर उकेरना उनमें डूबते उतराते हुए भावनाओं को टटोलना धक्कम पेल की दुनिया में वैराग्य का एक ज़रिया बन भीतर तक तर कर जाता है द्रवित होता है दिल तब और छलकता है जाम आखों से जब आत्मिक संतुष्टि लिए  तो खुशी के आंसुओं का सैलाब बन बह निकलता है एक दरिया जो बहा ले जाता अपने संग भ्रम, अंतर्वेदना और मनोव्यथा और पीछे छोड़ जाता है एक निर्मल द्विअर्थी जीवन की सार्थकता ©डॉ अर्चना टंडन

" कोविड काल का पतझड़" डॉ अर्चना द्वारा रचित कविता

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  सरकार बनाती रही कोविड महामारी को हराने की योजना निरंतर किंतु अपनी मार से रंग अनेक दिखला गया कोविड काल का पतझड़  कहीं तो दहला गई लाइलाज खांसी की ख़ड़ खड़ और कहीं हो गई बीमारी कुछ क्षणों में ही छूमंतर जनता करती रही कहीं तो बचाव के तरीकों से किनारा तो कहीं सेवाभाव से दिखाते रहे राह डॉक्टर बन ध्रुव तारा कहीं तो मौत बना गई दुनियाभर में कई परिवारों को गमगीन और कहीं ये बीमारी घर में कैद परिवारों की ज़िंदगी कर गई रंगीन  रोज़ी रोटी ठप्प कर के रुला गई  कहीं तो ये जनता को  तो कहीं थका गई ये परिवारों को मीलों का सफर तय करा के प्रार्थना कर रहें सब वैक्सीन के रामबाण बनकर आने का पतझड़ से घिरे इस संसार को वसंत बन इस बीमारी से मुक्ति दिलाने का ©डॉ अर्चना टंडन

"वन" डॉ अर्चना द्वारा रचित कविता

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बेतरतीब फैले वन नहीं ईश्वर द्वारा सृजित उपवन हैं ये हरित क्रांति ला धरती को संभालने की उसकी तरकीब है ये निखरते हैं ये संभाले अपने अंदर अनमोल वन्य जीवन कायम रखते हैं ये इस तरह धरती का संतुलन  जंगली जीव जंतुओं के ये खजाने हैं असाधारण जहाँ फसाने गूंजते हैं रंग बिरंगे पक्षियों के हर क्षण मन मोह लेती है यहाँ के बहते झरनों  की गूँजती धुन चौंक जाते हैं जीव जंतु सूखे पत्तों की चरमराहट को सुन पेड़ों के बीच से झांकता सूरज ऐसा होता है प्रतीत मानों स्वर्णिम सूर्योदय सारे दिन हो रहा हो फलित वनक्षेत्र हर देश के लिए अकूत संपदा के भंडार हैं वायु के गैस संतुलन को संभालते ये धरती के पहरेदार हैं © डॉ अर्चना टंडन

"विरासत" डॉ अर्चना द्वारा रचित कविता

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  गर्व है मुझे इस देश की विरासत पर दया और करुणा के ब्रम्हास्त्र पर जहाँ अंकुरित हुए आध्यात्मिकता के बीज सदियों पहले पल्लवित हुए जो वेद-पुराण की कथाओं में  प्रदर्शित हुए अचंभित करने वाली वास्तुकला में  और प्रसारित हुए संस्कृति बन बिखरी जहाँ सदा त्याग और वैराग्य की सांस्कृतिक विरासत  प्राणियों में प्रेम और भाईचारे की लौ  जगी जहाँ सर्वप्रथम उजले भविष्य की ओर अग्रसर इस देश की सनातनी संस्कृति में पलती सभ्यता ही तो नींव थी नष्ट करना चाहा जिसे आक्रांताओं ने रौंदकर ताकि पहना सकें  वो दासता और दयनीयता का चोला हमें कुचलकर अब तो निकल पड़े हैं एक इरादा पाले हम इस विरासत में मिली नींव पर खड़ी करेंगे एक इमारत बुलंद  छोड़ जाएंगे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक परिवेश जहाँ फिर पाएंगे वो स्वछंद © डॉ अर्चना टंडन

My pride

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  My eyes would light up at your each achievement As I observed and tended to your each requirement Watching those small feet make an attempt to wander To discover and grasp things that appeared to be placed yonder You were growing and maturing at a fast pace As we stood aghast at your developing grace From a toddler you had now become a empathetic pediatrician An ambition that you had always considered as your mission Lucky throughout were you to have your father as your guide Your accomplishments have always given us joy and  immense pride © Dr Archana Tandon

सैनिक

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  सीना तान फौलाद सा जो दुश्मनों का संहार करने निकलता है जान हथेली पर लिए वो सीमाओं पर निडर फिरता है हम महफूज़ हो विचरते रहें जीवंत हो देश की समृद्धि में अपना योगदान देते रहें  ये वो अपनी मुस्तैदी से निश्चित करता है वीरता की हर सीमा लांघ  सीने पे गोली खा खून बहा वो निश्चय ही  देश का अभिमान ऊंचा करता है उसके इस बलिदान में शामिल है उसका हर एक पारिवारिक सदस्य आँसू पीकर मुखाग्नि देना है इनके अदम्य साहस का परिचायक इन आराधनातुल्य आत्माओं का आज सर झुकाकर नमन देश की उन्नति और समृद्धि में अपना योगदान  निरंतर बनाए रखने का संकल्प ले आज अर्पित करते हैं हम इन्हें श्रद्धासुमन  ©डॉ अर्चना टंडन

Peace

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  Let peace not cease to exist At the behest of  Armania and Azarbaijaan war that persists Let world not stand withered and divided As arms and ammunitions to the fleets are added For destruction will bring in gory scenarios Precipitating mental and physical illnesses that the world not knows Work towards eternal peace to prevail By singing sagas of love of electic morale Wiping out the dividing lines of  colonial and political origin To establish brotherhood courtesy compassion therein ©Dr Archana Tandon

बेटियों का रामराज्य कब

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"सुदीक्षा भाटी को समर्पित" Won Certificate of Excellence in Asian Society's Annual WordSmith's Award for Hindi Poetry for my poem " बेटियों का रामराज्य कब" थी वो मेधावी और साधारण परिवार से आई थी क्या इतने नंबर कोई ला सकता है जितने वो लाई थी स्कॉलरशिप पा अमरीका में पढ़ कर कोरोनाकाल में जो घर वापस आई थी लड़कियों की आज़ादी का सपना देखने वाली  दुर्घटनावश क्यों काल के हाथ समाई थी क्यों आज ये समाज इतना गर्त में खिसक गया कि लड़कियों को एक सुरक्षित माहौल देने में विफल हो गया क्यों रास्ते में चलना लड़कियों के लिए दूभर हो गया और रास्तों पर मनचले लड़कों का फर्राटा भरना आम हो गया ऐसे लड़के जो छेड़खानी करना अपना अधिकार समझने लगे दीखने लगे ऐसे पथभ्रष्ट सड़कों पर मोटरसाइकिल या गाड़ी में सवार किसी गाड़ी के आगे पीछे होते हुए लड़कियों को देख भद्दे मज़ाक या फबती कसते हुए कभी पैसे और रसूक में मदहोश तो कभी शराब के नशे में चूर दर्शाते हुए एक व्यक्तिव वीभत्स और क्रूर समझ सकती हूँ खूब इसे क्योंकि देख चुकी हूं अपनी आंखों से ये सब कभी किसी शराबी द्वारा आस्तीन खिंचते हुए तो कभी थप्पड़, घूँसे से वार...

The story of my life

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The story of my life Cannot be contained in a few words Neither can a few flowery elaborations  Push away the experienced dearth I flowed down the mountain starting as a slender river Encountering on the way the gigantic inescapable boulders The pressures thrust on my way I tried to ease By putting in all my professional and organisational expertise Slowly the expanse began to take an aerodynamic shape Easing the journey towards the sea which had no escape Balancing myself between the shores I made my way Enjoying the blooming gardens that took shape by the bay On the horizon the sea was visible now For the approaching times I had to make a vow Of surrendering myself to the mighty ocean By relinquishing my deep seated primal emotions ©Dr Archana Tandon

मातृभाषा का वात्सल्य

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हृदय धड़कता है उत्तेजित हो रक्त संचारित होता है हिंदी में सृजित हर रचना से जब वात्सल्य माँ सा मिलता है सुनकर हिंदी उमड़ती हैं भावनाएं लिखने को हिंदी मचलती है कोशिकाएं विचारों के देवनागरी में लिप्यांतरित होने से सुकून रूह को मिलता है हिंदी में सृजित हर रचना से जब वात्सल्य माँ सा मिलता है बाल्यकाल से वृद्धावस्था तक  हर काल है हिंदी में जिया  मात्राओं के गलियारों में खो हिंदी के वैज्ञानिक कोण को समझा उम्र का हर दशक रहा समर्पित हिंदी को क्योंकि हिंदी में सृजित रचना से वात्सल्य माँ सा मिलता है हिंदी है तो भाषाओं में ही एक भाषा पूरी करती है ये अर्थपूर्ण वार्तालाप की अभिलाषा रूप अनेक विभिन्न प्रदेशों में इसके गीतों कहानियों के सृजन से हैं जो फलते हिन्द देश की हिंदी है हम सबको प्यारी क्योंकि हिंदी में सृजित हर रचना से वात्सल्य माँ सा मिलता है डॉ अर्चना टंडन

संताप क्यों हो करते तुम

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संताप में घिर खुद को क्यों हो खोते तुम अवसाद में डूब क्यों हो रोते तुम सुनहरी एक सुबह का इंतज़ार करो  व्यवधानों को परे हटा ईश्वर में विश्वास रक्खो काली अंधियारी रातों की भी  सुनहरी सुबह तो होती ही है घुटन भरी ज़िन्दगी को भी  कभी तो सांसें मिलती ही हैं प्रेम में हारे युगल की कहानी की भी फिर सुहानी शुरुआत होती है बुढ़ापे की कांपती देह की सहारे की आस भी निश्चित ही पूरी होती है समय के बदलने की तू भी उम्मीद धर आत्मविश्वास से लबरेज़ तू लंबी कुलांचे भर ईश्वरीय शक्ति में तू अटूट विश्वास रखकर चल अब मुस्कुरा तू संताप को परे हटा कर ©डॉ अर्चना टंडन