संताप क्यों हो करते तुम
संताप में घिर खुद को क्यों हो खोते तुम
अवसाद में डूब क्यों हो रोते तुम
सुनहरी एक सुबह का इंतज़ार करो
व्यवधानों को परे हटा ईश्वर में विश्वास रक्खो
काली अंधियारी रातों की भी
सुनहरी सुबह तो होती ही है
घुटन भरी ज़िन्दगी को भी
कभी तो सांसें मिलती ही हैं
प्रेम में हारे युगल की कहानी की भी
फिर सुहानी शुरुआत होती है
बुढ़ापे की कांपती देह की सहारे की आस भी
निश्चित ही पूरी होती है
समय के बदलने की तू भी उम्मीद धर
आत्मविश्वास से लबरेज़ तू लंबी कुलांचे भर
ईश्वरीय शक्ति में तू अटूट विश्वास रखकर
चल अब मुस्कुरा तू संताप को परे हटा कर
©डॉ अर्चना टंडन
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