ध्यान
आखें बंद कीं ध्यान लगाया
सहसा एक ख्याल सा मन में आया
बेटी के लिए सामान भेजना था
मैंने उसे परे हटा फिर गोता लगाया
इस बार बेटे का चेहरा सामने आया
जैसे कह रहा हो मम्मी बताइए कैसे करूँ
मैंने फिर अपने आप को समझाया
अरे इन उफनती लहरों पर ही तो काबू पाना है
गहरी सांस लेते हुए शून्य में जाना है
ध्यान को मैंने फिर से केन्द्रित किया
पीठ सीधी कर फिर उन पहाड़ों
झरनों उगते सूरज का मनन किया
एक क्षण को सुकून महसूस हुआ
फिर बेटी का विचार आया
जिसे मैंने आने दिया और फिर जाने भी दिया
बेटे के कैरियर का भी आया
उसको भी आ कर आगे बढ़ने न दिया
अब तो ध्यान केंद्रित था
जिस्म से अलग थलग खड़ी थी मैं
अपने आप को भी देख पा रही थी अब
सुना था जिस्म से रूह तक का रास्ता टेढ़ा होता है
ध्यान ही एक रास्ता है जो सीधा वहां तक पहुँचता है
वो सीधा रास्ता साफ़ दिखाई दे रहा था
दीख रहा था ये परेशनियाँ अलग होते ही अपनी नहीं लगतीं
ये तो इस शरीर से जुडी हैं हमारी ही बनाई हुई हैं
हर समस्या का सुलझा स्वरूप तो
समस्या के साथ ही जन्म ले लेता है
ईश्वर द्वारा तय समय पर प्रकट होता है
मन शांत था ,विचारों की लहरें थम गई थीं
मैं अपना शांत चेहरा ही नहीं पहचान पा रही थी
वो तनी हुई भृकुटियाँ गायब थीं
उस थके हुए चेहरे पर खिली एक मुस्कान थी
दूर बहुत दूर कहीं जैसे
धरती आसमान से मिल रही थी
रूह शरीर को थाम रही थी
उफनती लहरें शांत हो रहीं थीं
और मैं खुद को पहचान रही थी
कि इण्टरकॉम की घंटी बजी
ध्यान टूटा यथार्थ दिखा
दौड़ कर फ़ोन उठाया
उधर से सिस्टर की आवाज़ सुनाई दी
मैडम जल्दी आइये बच्चे का हेड दिख रहा है
मैं लेबर रूम में घुसी तो देखा
बस दो सेकंड की देर थी
फ़ौरन चीरा दिया और हेड डिलीवर किया
ये क्या तीन तीन नाल के फंदे
मैंने ऊपर देखा ,सिस्टर बोली
धड़कन बिलकुल सही थी
इसलिए आपको परेशान नहीं किया
मैंने बड़ी ही धीरता से बच्चे को फंदे से मुक्त किया
बच्चा तुरंत रो दिया और रो कर उसने हम सबको हंसा भी दिया
न तो डोपलर में ही ये कमी आई थी
न ही पुरानी ट्रेसिंग में कोई कमी मुझेेे बाद में ही दीख पाई थी
शायद पुराना वक़्त होता तो मैं सिस्टर पर खीज उतार रही होती
पर उस दो मिनट के ध्यान ने मेरी विवेचना बदल डाली थी
और ईश्वर के होने की कीमत बखूबी दर्शा दी थी
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