वह नौजवान
आँखों में सपने लिए
फौलाद सा निश्चय किये
जो चल दिया
आत्मविश्वास से लबरेज़
नौजवानी के जोश में
उसे न थी परवाह
ज़माने के फरेब से
वो तो चला था
इससे बचते बचाते
अरमानों को यथार्थ में बदलने
अस्तित्व का गणित
गुणा-भाग, जोड़-घटाना
समझने में वक़्त नहीं लगा उसे
वास्तविकता और पारदर्शिता
का जुड़ाव लिये
भेद जब समझ आया उसे
तो जीवन रूपी दरिया
पार करना लगा भाने उसे
अब वो नौजवान
आत्मविश्वास से लबरेज़
निपुण मल्लाह बन
प्रगति पथ का पथिक था
©डॉ अर्चना टंडन
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