समय जो थम जाता
समय जो थम जाता
तो किसी को तो
ज़िन्दगी की चकाचौंध लुभाती
और कहीं अंधियारी रातें
ज़िन्दगियाँ लील जातीं
बाल्यकाल में तैरते हम
वृद्धावस्ता की सलाहियत को रोते
कमसिन अदाओं को देख
कैसे दिल ये धड़कते
विषमताओं से घिर
कुछ शायद
जीने का हक़ ही खो देते
उपलब्धियों के चक्रव्यूह के
बोझ तले
कुछ आज़ादी को रोते
वेग विलुप्त दरिया कहीं
सागर से मिलने को तरसती
थमे समय का दंश झेल
ज़िन्दगी रंगीनियत ही खोती
तो समय तो चलायमान है
चलायमान ही रहने दो
ज़िन्दगी को वेग में
अपने गतिशील रहने दो
थमा समय तो
एक अंतहीन दलदल है
जो असामयिक मृत्यु का
ही शायद द्योतक है
© डॉ अर्चना टंडन
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