बोलती आँखें
जिसकी मुझे युगों से तलाश थी
तुम इसे कोरी कल्पना कह कर टाल सकते हो
पर क्या कभी इन भावनाओं को समझ पाओगे
स्थिरता का एहसास जब टपकता था इन अधखुली आँखों से
तो ठहराव लिए असमंजस जैसे ढूँढता था कुछ
और दर्द भी झलकता था जो क्षणिक ही रहता था
और फिर ओझल हो जाता था तुम्हारी मुस्कुराहट के पीछे कहीं
इनकी समझ की गहराई आकृष्ट कर झकझोर जाती थी मुझे
और आलिंगनबद्ध कर सुकून भी बेहिसाब पहुंचा जाया करती थी
आज फिर मुझे उन गहराइयों में उतर खोने का मन है
चक्रवात के चक्रव्यूहों में तुम्हें खोजने का मन है
© डॉ अर्चना टंडन
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