परछाईं



तुझमें देखती हूँ मैं अपनी परछाईं


तेरी मुस्कान में, तेरी इच्छाशक्ति में


तेरी हर उपलब्धि और उद्देश्यों में


जो झंकृत कर जाती है मन के तार


और याद दिलाती है एक रीले दौड़ की


जहाँ सौंप कर अपना दायित्व


हर खिलाड़ी अगले खिलाड़ी का सम्बल देख


खुश होता है और कामना करता है


कि सम्पूर्ण कर सके उसकी परछाईं हर दौड़


तन्मयता से और स्थायित्व से


© डॉ अर्चना टंडन

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