परिचायक आँसू



पथरीली और भर आईं आँखों से आज जो टपका था
वो बरसों का सैलाब था जो बह निकला था
घुटी हुई साँसों को जैसे श्वास देता
आह को दर्द सलाखों की कैद से मुक्त करता
वेदना में डूबी आत्मा को जैसे सहला एक रास्ता दिखाता
अंदरूनी कोलाहल को शांत करता
ये बहाव आज अदम्य साहस का परिचायक था
जो उसे सदा सदा के लिए जुड़ाव के एक बंधन से
आज़ाद कर स्वावलंबी बना गया था

© डॉ अर्चना टंडन

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