कोविड काल और श्रमिक
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बुनियादों की हर ईंट तुम्हारी मैने लगाई है
तुम्हारे घरौंदों की दीवार भी मैने ही सजाई है
खिड़कियों को ग्रिलों से मजबूत कर दरवाजे गढ़
तुम्हें दैवीय आपदाओं और आक्रांताओं से सुरक्षा दिलाई है
घरों में ही नहीं
अपितु रोजमर्रा के इस्तेमाल की हर चीज़ की
तह में तुम मुझे पाओगे
अपितु रोजमर्रा के इस्तेमाल की हर चीज़ की
तह में तुम मुझे पाओगे
आँखें घुमा कर देखोगे
तो मेहनत को मेरी तुम परख पाओगे
और मेरी दो रोटी कमाने की
मशक्कत को समझ पाओगे
मशक्कत को समझ पाओगे
हम मेहनत कश अपने अपने हुनर में माहिर
ठेकेदारों के दिये हुए चंद रुपयों पर पलते हैं
दो जून रोटी कमाने की खातिर
हम अक्सर मीलों चलते हैं
काश कि तुम्हारे शुक्रानों की फेहरिस्त में
ठेकेदारों के साथ हम भी मौजूद होते
वैश्विक उत्थान की परियोजनाओं में
और श्रमिक उत्थान की परिकल्पनाओं में शुमार होते
तो आज, जिस आदर से इस महामारी काल में
रसूकदार विमान से अपने देश लाए गए
रसूकदार विमान से अपने देश लाए गए
हम भी सामान ढो, परिवार के साथ पलायन कर
आज मीलों पैदल चलने को मजबूर न हुए होते
© डॉ अर्चना टंडन
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