दौर चुनावों का
सत्ता के गलियारो में आज फिर क्यों शोर है
लगता है सिंघासन डगमगाने का चल रहा दौर है
कौन देगा किसको पटकनी ,
जीत दर्ज करा रहेगा वोटों का धनी
हर चौराहे पर इन्ही चर्चाओं का दौर है
जात पात, भाषा, पंथ गिना नेताओं में आज फिर उपजी होड़ है
लगता है चुनाव नहीं यह कोई जंग का मैदान है
अपनत्व का नहीं यहाँ नामो निशान है
टीवी, अखबार सोशल साइट्स और मीडिया पर शोर है
प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष आज फिर इन्ही चर्चाओं का दौर है
यहाँ भाई भतीजावाद अपने चरम पर है
दामन थामना और पटकनी देना, यहां आम है
जिनके शब्दकोष में ईमान और भरोसा शब्द रहे न कभी
ऐसे ईमान और रसूक वालों की यहाँ होड़ है
सत्ता के गलियारो में आज फिर क्यों शोर है
लगता है सिंघासन डगमगाने का चल रहा दौर है
फिर क्यूँ जाए आम जनता वोट देने
बीके हुए चुनावों का बहिष्कार वह क्यूँ न करे
जहाँ कलुषित चरित्र वालों का जोर है
और सद्चरित्र को कलंकित दिखाने का मच रहा शोर है
आखिर कब तक ये खंडित व्यक्तित्व वाले ही चुनाव में दिखेंगे
जो मुंह में राम और बगल में छुरी रख अपना रसूक कायम करेंगे
सब बुद्धिजीवियों को जगाने का चलाना होगा दौर अब
चर्चाओं को भी हर प्रयत्न कर देना होगा सही मोड़ अब
जहाँ भी अफवाहों का जोर हो
और मच रहा अनैतिकता का शोर हो
पेश करना होगा हर अफवाह का सुलझा रूप
और देकर तरजीह नैतिकता को संवारना होगा हर चुनाव का स्वरुप
सत्ता के गलियारो में आज फिर क्यों शोर है
लगता है सिंघासन डगमगाने का चल रहा दौर है
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