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तेरा मेरा रिश्ता

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वो नहीं पूछते कि मेरा वजूद क्या है वो नहीं पूछते कि मैं किसलिए अपनी दूरबीन लिए उनका पीछा करती हूँ उन्हें नहीं मतलब मेरे मक़सद से मेरे रुतबे से मेरे स्वाभाविक या अस्वाभाविक तौर तरीकों से वो तो मगन हैं अपनी ही दुनिया में तल्लीन अपनी रोजी रोटी की जुगत लगाने में घोंसले को एक आरामदायी रूप देने में अपने नन्हे मुन्नों को इस दुनिया में ला तौर तरीके सिखाने में झाड़ियों से, दरख्तों के छेदों से पत्तों से और कई बार दूर आसमान से वो मुझे तकते हैं जैसे कह रहे हों आओ ,आ जाओ दूर से क्यूँ तकती हो हमें किसे दिखाओगी ये तस्वीरें उन्हें जो नहीं जानते उस तपिश को जो हम बेघर झेलते है उन्हें जो नहीं जानते कैसे तिनका तिनका बटोर अपनों को लाया जाता है इस दुनिया में उन्हें जो नहीं जानते रोज भूख को मिटाने के लिए न जाने कितने चक्कर लगाने पड़ते है उन्हें जो नहीं जानते की भूख, प्यास ही एकमात्र ज़रूरत है…. वो जो बांटनें में लगे हैं धरती को रेखाओं से, सीमाओं से दीवारों से, कुर्सी के अरमानों से उस धरती को जो एक देन है ईश्वर की हम सबके लिए...

मैं ऐसी क्यों हूँ

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सतही लगाव को आत्मसात नही कर पाती इसे बचकानापन कह लीजिए मेरा किसी को अपना मानने का मतलब उसे अपना हिस्सा मानना है मेरे लिए Friends are acquaintances जैसे वाक्य समझ तो आते हैं किन्तु ग्राह्य नहीं मुझे हाँ मैं सांसारिक नहीं हूँ अपाच्य से किनारा कर पाच्य की खोज और इस प्रक्रिया का विश्लेषण मेरे अंतःकरण को कहीं शांत करता है सांसारिकता में खुद को खो भटकने से अच्छा है कि इस मनमोहक प्रकृति की गोद में विचर कर खुद को पा जाऊं डॉ अर्चना टंडन

सम्मोहन में छिपी है विरक्ति

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The link to where I recite the poem and try to elaborate on my interpretation of it. https://youtu.be/WL50gmZobV0 बहुत बड़ी हो तुम फैली, बहुरंगी विस्तार में अपने कोणों को समेटे हुए मैं भी तो एक प्रकार हूँ तुम्हारे आकार का समझना चाह के भी नही समझ सकती तुम्हें कभी सिर्फ अपलक निहारना तुम्हारी गति से अचम्भित होना तुम्हारे रंगों में डूब जाना तुम्हें क़ैद कर लेना और संजोना कहीं भीतर तक तर कर जाता है मुझे प्यास बुझती नहीं पर तृप्त हो जाती हूँ मैं कहीं सम्मोहित हो निकल पड़ती हूँ ढूंढने फिर एक नया कोण जो धीरे धीरे अपना आकार खो कभी फैल कर वृत्त में, कभी सिमट कर शून्य में और कभी एक लकीर का रूप धारण कर सुलझा जाता है मेरे अनेक प्रश्नों को और दे जाता है एक निर्देश सम्मोहन से गुजरते हुए विरक्ति का डॉ अर्चना टंडन

Fluidity

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Where there is Fluidity of race, gender, caste and creed Humanity resides Where there is Fluidity within and outside the religious and political sect Humanity resides Where the boundaries Of region, state, countries and continent Are only geographical and Maintain across them Fluidity of movement Humanity resides Dr Archana Tandon

तुम

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बेहद करीब से देखा और महसूस किया है तुम्हें संजीदगी में है तुम्हारे एक दीवानापन और शराफत में   है छिपी एक हसीन शरारत सीखने को आतुर तुम सिखाते हो तरतीब से और जगा जाते हो अपने पीछे एक सीखने की ललक एक एहसास,एक दीवानापन अवस्थाओं, संस्थाओं और परिस्थितियों को पार कर कुछ कर गुजरने की धुन डॉ अर्चना टंडन

अर्थशास्त्र का नीतिशास्त्र

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बाज़ारों की रुपहली रोशनियों की चकाचौध ने भुला दिये है सूर्योदय और सूर्यास्त के मायने दमकती लहराती अदाओं ने बदल दिए हैं फ़िज़ाओं के अफ़साने तो तुम भी पीछे क्यों रहो बाज़ारों का है ज़माना बाज़ार बनाओ और बाज़ार के तौर तरीके अपनाओ हर क्षण है यहां लक्ष्मी को समर्पित सरस्वती की आड़ में, दुर्गा की ओट में खेला जाता है यहां खेल सांप सीढ़ी का दाँव पे दाँव खेल बाज़ार बनाने का तो तुम भी पीछे क्यों रहो बाज़ारों का है ज़माना बाज़ार बनाओ और बाज़ार के तौर तरीके अपनाओ बदल गए हैं जब सांसारिक अस्पष्टता के सिद्धांत अर्थशास्त्र ही जब करता हो तय अस्पष्टता की स्पष्टता तो तुम भी पीछे क्यों रहो बाज़ारों का है ज़माना बाज़ार बनाओ और बाज़ार के तौर तरीके अपनाओ मोदीजी का कहा मान जाओ खुद समझो औरों को भी समझाओ कि नौकरी में क्या रक्खा है खुद बाज़ार बनाओ और बाज़ार में रम जाओ सुब्रमण्यम स्वामी का कहा अगर सच हुआ और आयकर ही खत्म हुआ तो छुपा कर रक्खी लक्ष्मी बाज़ार में आएगी इंसान के स्वामित्व से मुक्ति पा वो स्वछंद विचर पाएगी डॉ अर्चना टंडन ...

विरोधाभासी सँसार

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ऐसी भी है एक जात जिनकी नही है कोई बिसात न उनपे रही कभी कुर्सी न ही रहा कभी ताज फिर भी मुखर रहे वो हमेशा अपने वचनों और कर्मों में न रहा विश्वास उन्हें चरखी पर न ही कभी फिरकी पर और करते चले गए वो जुगत हमेशा समभाव और समानता के लिए किन्तु, इस प्रैक्टिकल दुनिया का खेल है निराला रीयलिस्टिक बेचारा बेमौत ही है मारा जाता  जब सरस्वती का चीर हरण कर प्रैक्टिकेलिटी की नींव पर लक्ष्मी का अलौकिक साम्राज्य  ही है सदैव स्थापित हो जाता डॉ अर्चना टंडन

हाथी के दांत

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वाह रे स्त्री तेरी भी क्या किस्मत रही तेरा नाम ले ले कर राजपाट लूटे गए बेचारगी परोस कर तेरा शोषण होता रहा और तू उफ्फ न कर सकी अमीर सफेदपोश बन गरीब को भ्रूण हत्या का पाठ पढ़ा अन्य तरीकों से वारिस पैदा करता रहा और गरीब बेटियों को पढ़ा लिखा दहेज जुटा कर भी अकेला का अकेला रहा मानों या न मानों ये कहानी कुछ और है दीखती कुछ है और होती कुछ और है डॉ अर्चना टंडन

मोक्ष रूपी वरदान

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बिखरी बिखरी  ज़िन्दगी कहूँ तुझे याकि सिमटी हुई ज़िन्दगी कहूँ चौतरफा तलाश में भटकती  ज़िन्दगी कहूँ तुझे याकि स्थिर सी ज़िन्दगी कहूँ पल पल का हिसाब लेती  ज़िन्दगी कहूँ तुझे याकि पलों की तलाश में भटकती ज़िन्दगी कहूँ कविताओं में भटक आत्मिक रस तलाशती  ज़िन्दगी कहूँ तुझे या कैमरे में कैद होती  पल पल का हिसाब रखती ज़िन्दगी कहूँ विज्ञान में कला तलाशती ज़िन्दगी कहूँ तुझे  याकि कला नें विज्ञान तलाशती ज़िन्दगी कहूँ सपनों को यथार्थ में बदलती  ज़िन्दगी कहूँ तुझे याकि विद्यमान को कल्पित करती ज़िन्दगी कहूँ तलाश है तू याकि ठहराव है प्राप्य है तू याकि अप्राप्य है ये तो नहीं कह सकती पर ये निश्चित है कि  तुझे रंग बिरंगी ही कहूंगी स्याह सफेद नहीं क्योंकि तूने मेरे तरकश में विज्ञान, कला, गीत संगीत  के असीमित रंग भर इस अल्पकालिक स्वरूप को एक इंद्रधनुषीय फ़ैलाव दे असीमित स्वरूप प्रदान किया है डॉ अर्चना टंडन     ...