तेरा मेरा रिश्ता
वो नहीं पूछते
कि मेरा वजूद क्या है
वो नहीं पूछते कि
मैं किसलिए अपनी दूरबीन लिए
उनका पीछा करती हूँ
उन्हें नहीं मतलब मेरे मक़सद से
मेरे रुतबे से
मेरे स्वाभाविक या
अस्वाभाविक तौर तरीकों से
वो तो मगन हैं
अपनी ही दुनिया में तल्लीन
अपनी रोजी रोटी की
जुगत लगाने में
घोंसले को एक
आरामदायी रूप देने में
अपने नन्हे मुन्नों को
इस दुनिया में ला
तौर तरीके सिखाने में
झाड़ियों से, दरख्तों के छेदों से
पत्तों से और कई बार दूर आसमान से
वो मुझे तकते हैं
जैसे कह रहे हों
आओ ,आ जाओ
दूर से क्यूँ तकती हो हमें
किसे दिखाओगी ये तस्वीरें
उन्हें जो नहीं जानते
उस तपिश को जो हम बेघर झेलते है
उन्हें जो नहीं जानते
कैसे तिनका तिनका बटोर
अपनों को लाया जाता है इस दुनिया में
उन्हें जो नहीं जानते
रोज भूख को मिटाने के लिए
न जाने कितने चक्कर लगाने पड़ते है
उन्हें जो नहीं जानते
की भूख, प्यास
ही एकमात्र ज़रूरत है….
वो जो बांटनें में लगे हैं
धरती को रेखाओं से, सीमाओं से
दीवारों से, कुर्सी के अरमानों से
उस धरती को जो एक देन है
ईश्वर की हम सबके लिए
क्योंकि तुम भी समझती हो
कि कैमरे में कैद कर
सोशल साइट्स पर पोस्ट कर
तुम हमें आज़ाद नहीं कर रही हो
या हमें अपने कला से
सुनहला रुपहला रूप दे
हमारी कीमत को
चार चांद नही लगा रही हो
तो फिर क्यों तुम हमें
रोज अनगिनत कोणों से
रंग बिरंगे अवतारों में
प्रदर्शित करती हो
क्योंकि कोई नहीं समझेगा
तुम्हारा मेरा रिश्ता
तुम्हारा मेरी तरफ खिंचाव
हमारा एक दूसरे को निहारना
निहार कर सुकून पाना
और समझना उस बारीकी को
कि आज़ादी और वो भी
बिना सीमाओं,दीवारों और अरमानों
वाली आज़ादी
क्या होती है
डॉ अर्चना टंडन
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