विरोधाभासी सँसार



ऐसी भी है एक जात
जिनकी नही है कोई बिसात
न उनपे रही कभी कुर्सी
न ही रहा कभी ताज
फिर भी मुखर रहे वो हमेशा
अपने वचनों और कर्मों में

न रहा विश्वास उन्हें चरखी पर
न ही कभी फिरकी पर
और करते चले गए वो जुगत
हमेशा समभाव और समानता के लिए

किन्तु, इस प्रैक्टिकल दुनिया
का खेल है निराला
रीयलिस्टिक बेचारा
बेमौत ही है मारा जाता 
जब सरस्वती का चीर हरण कर
प्रैक्टिकेलिटी की नींव पर
लक्ष्मी का अलौकिक साम्राज्य 
ही है सदैव स्थापित हो जाता

डॉ अर्चना टंडन

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