वजूद
ऐसे भी हैं कुछ वजूद
कि वजूद है उनका तो कश्मकश है
तीर से भरा उनका हर तरकश है
मिटटी बनने से पहले बादशाहत की तमन्ना नहीं
बस दुनिया से जालसाजी हटाने की अकुलाहट है
माना कि मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है
तंज़ भी बरसते हैं कि मक़सद दिशाहीन है
पर रुकता नहीं है सैलाब उनका
क्योंकि लावा उनके अंदर का भले ही आकारहीन हो
धरती के अंदर होने वाली खलबली का द्योतक है
वसुंधरा की काया पर मानवीय प्रहार द्वारा
परिलक्षित हर असंतुलन का पूरक है
डॉ अर्चना टंडन
डॉ अर्चना टंडन
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