बेमक़सद



ज़रूरी नहीं मक़सद ही हो हमेशा
कभी बेमक़सद ही गुफ़्तगू करके देखो
अगर ढूंढोगे मक़सद अपने हर कृत्य में
तो खाली हाथ ही रह जाओगे सदा

कभी तो सिर्फ चलने के लिए चलो
और कभी सिर्फ मुस्कुराने के लिए मुस्कुराओ
कभी तो प्रेम को अंकुरित होने दो
सिर्फ प्रस्फुटित होने के लिए
ज़रूरी नहीं कि मक़सद ही हो हर दान के पीछे 
कभी बेमक़सद ही दान करके देखो

अक्षर जुड़ेंगे शब्द बनकर बहेंगे
इन्हें भी कभी बेमक़सद बहा कर देखो
रूप तो ये फिर भी धारण कर लेंगे
जब ये बह निकलेंगे बेमक़सद
शायद तब इनका महत्व शिरोधार्य होगा
क्योंकि मक़सद के गर्त में
हमेशा पारस्परिक लाभ की कामना है
और बेमक़सद हमेशा संग लिए है
खुद में खुद का सार

डॉ अर्चना टंडन

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