गुफ़्तगू



पत्ते लगे झड़ने और खड़खड़ाने
हल्की ठंडी बयार
में धूप मुरझाने लगी
चिड़ियों की चहचहाट लगी गूँजने
और अदरक का स्वाद लिए 
चाय की चुस्कियां भाने लगीं
सर्दी की शांति में ध्वनियों की गूंज फिर लगी देने सुनाई 
और इस आनंद में हल्की सी याद इम्तिहान की भी कहीं आई
स्कूल कॉलेज के इम्तिहान
में तो अव्वल ही रहे थे हमेशा
अब तो ज़िन्दगी के इम्तिहान के नतीजे की बारी थी आई
क्या वो होगा अतीत का ही प्रतिबिम्ब
या कि होगी एक नई परिभाषा परिभाषित
यही था आज का प्रतिवेदन और आज की आपसी गुफ़्तगू

डॉ अर्चना टंडन

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