केसरिया चाय बनाने का सलीका



शादी के लिए बनारसी साड़ियाँ
खरीदने का था पूरा माजरा
साड़ियों की हट्टी पर बैठने का था
मेरा ये पहला वाकया

ठठेरी बाजार वाराणसी के चौराहे की
कुछ बत्तीस साल पुरानी है ये घटना
जहाँ पसंद नापसंद की बिन बोले
गर्दन हिला व्यक्त करनी थी अवधारणा

असमंजस व थकान से सराबोर
जब निपटे थे सारे लेन देन के मामले
तो विश्वनाथ गली के मुहाने पर
चायवाले को देख 
अनायास ही खिल गए थे हम सबके चेहरे

हाँ यही वो जगह थी जहाँ से सीखा था मैंने
काढ़ा चाय बनाना
जो ज़िन्दगी के लिए भी दे गया था
एक सबक सुहाना

एक अदने से लड़के ने मुस्कुराते हुए बराबर मात्रा में 
दूध और पानी था मिलाया
अदरक और मसाला डाल उबाल आते ही
पैन को उठा बार बार था हिलाया

पूरी प्रक्रिया को शिद्दत से था
वो बार बार दोहराता
फेने के बैठते ही फिर पैन को
चूल्हे पर रख
उबाल का इंतज़ार वो था करता

जब फेने का रंग 
चाय के रंग से था निखरता
तब कहीं जाकर वो फिर एक बार अच्छे से घुमा
चाय को था ग्लॉस में था लौटता

जी मैंने वहाँ सिर्फ काढ़ा चाय बनाना ही, नही था सीखा
सीखा भी था मैंने उतार चढ़ाव में बहते हुए, रंगों को समेट,
रंगरेज़ का रंग में रंगने 
और खुद को उसमें ढालने का सलीका 

डॉ अर्चना टंडन



Comments

Popular posts from this blog

बेशकीमती लिबास

नज़रिया

What Is Truth? A Doctor’s Reflection on Balance