बारिश में सुलगता अंतर्मन





कुछ बेकसी कुछ अधूरापन 
थी कुछ बेकरारी कुछ एकाकीपन 
झमाझम बारिश में भी विचलित था आज क्यूँ मन
सांसारिकता से आज खिन्न सा था क्यूँ मन 




चाय कि चुस्कियां आज बेमज़ा ही थीं 
पतौड़ की शक्ल भी कुछ बेजान ही सी थी 
धुले हुए पौधों में भी कहीं रौनक गुम  थी 
फूलों के रंगों में से  जैसे  चमक कम  थी 


पाया था बहुत कुछ 
खोया न था कभी भी कुछ 
तो फिर ये कैसा सैलाब था
जो बिना तेज़ाब के ही उफान पर था
झमाझम  बारिश होने पर भी 
आज बेवजह सुलगा हुआ सा था


अर्चना टंडन 

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