कर्म बोध



मक़सद है तो है ललक
है सम्पूर्ण होने की कसक
और कहीं अधूरा रहने का विभ्रम भी

कर्म है तो है पूजन
है मन की शांति
साथ अपने लिए सुकून और तृप्ति

मकसद में है छुपी आसक्ति
पूरा हो तो प्रलोभन का अंदेशा
न पूरा हो तो विरक्ति का भय

कर्म है तो है संतुष्टि
आसक्ति से मुक्ति
और आत्मिक सुख की अनुभूति

मक़सद है तो है अनवरत दौड़
है इस होड़ में टूटने का भय
और घुटन भी बेशुमार

कर्म है तो है ये इक भ्रमण
निरंतरता का चोला पहने
सम्पूर्णता का एहसास
लिए इक स्वर्गीय ठौर

डॉ अर्चना टंडन



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