मेरे अपने

मेरे अपने 



बच्चे आए 
आकर लिपट गए 
नानी ,चाची माँ मम्मी 
शब्द चारों तरफ बिखेर कर
बेइंतेहा सुकून कहीं 
अंतर्मन को पंहुचा गए  


पुराने लम्हे लौटे थे 
खिलौने ,किताबें कपडे बिखरे थे 
जय ने बिस्तर पर से 
जो कुछ समेटना चाहा 
तो आवाज़ आई मम्मी 
" इनका तो बहुत मुश्किल है "
बहुत जाना पहचाना सा लगा 
बिट्टू द्वारा इजाद किया हुआ 
सबकी जुबान पर चढ़ा हुआ 



जय ने प्यार से 
बच्चे के सर पर हाथ जो फेरा 
तो बच्चा जोर से चिल्लाया 
मम्मी संभालिये इन्हें 
देखिये तंग कर रहे हैं 
मम्मी फ़ौरन बच्चे की तरफदारी करने लगीं 
और पापा मुस्कुराते हुए  चल दिए 



रात स्काइप से सब कनेक्ट हुए 
टट्टी -पॉटी शब्द सुनाई  दिए 
जैसे बिना इन शब्दों  के कुछ अधूरापन सा था
और इन्हें सुन सबकी हंसी में कहीं एक अपनापन सा था



बिट्टू मोटी,टिड्डी छोटी 
कुक्की थे पार्ले ,  मिन्नो थीं मिनी
ताऊ चचा थे बाबूजी के तीन बन्दर 
तो मोनू थे सब बच्चों के चेंज ओवर
ताई  थीं सबको बहुत ही  प्यारी 
और मुझे बुलाते थे सब माया साराभाई  



सुबह सवेरे बाबुराम की जलेबी जो आईं 
तो साथ में मिलके सबने कचौरियाँ भी खाई
श्याम की टिक्की से जो मन न भरा 
तो सुरेश के मुर्गे पर आ कर टिका 



घर गुलज़ार था
अपनों के  प्यार से 
गुज़रा वक़्त लौटा था
वीराने से संसार में 




---- अर्चना टंडन 




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