उसकी लेखनी की महिमा
This poem is dedicated to a colleague of mine who is a very sensitive human being with an awesome power to write and express Dr Jasmine Mehta .
उसकी कलम जो उठीं तो मानो नदियाँ उफन पड़ी
और उसके मुंह से गीत जो फूटे तो श्रीकृष्ण की बंसी भी थम गई
और उसके मुंह से गीत जो फूटे तो श्रीकृष्ण की बंसी भी थम गई
पर जब कलम थमी तो धुआंधार झरते झरने सूख गए
और उसके होंठ जो कंपकंपा के रह गए तो युगों युगों के गीत थम गए
अर्चना टंडन
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