एक ज़रुरत -- एक अरमान
हर यात्रा का गंतव्य हो
हर कहानी का अंत हो
हर नदी सागर में मिले
हर ख्वाहिश पूरी हो सके
ज़रूरी तो नहीं
पर हर बेसहारा को सहारा मिले
हर भूखे पेट को रोटी मिले
हर उफनते तूफ़ान को विश्राम मिले
हर बेघर को आसरा मिले
ये कामना है मेरी
हर कोशिश कामयाब हो
हर रास्ता आसान हो
हर रथ के सारथी श्रीकृष्ण हों
और हर उम्मीद को मंजिल मिले
ज़रूरी तो नहीं
पर हर बेचैन मन को चैन मिले
सब दुखों को सुख का आवरण मिले
बेचैन करने वाले कष्टों का निवारण हो
और अंदरूनी और बाहरी युद्ध से मुक्ति मिले
ये दुआ है मेरी
हर तारीफ का मकसद हो
हर जीत ख़ुशी में तब्दील हो
दान कर हर बार सुकून ही मिले
की गई हर प्रार्थना स्वीकार ही हो
ज़रूरी तो नहीं
पर हर स्त्री की आबरू बची रहे
हर बिलखते बालक को माँ का प्यार मिले
हर समाज को दहेजप्रथा से मुक्ति मिले
हर बालमजदूर को मुफ्त स्कूली शिक्षा मिले
ये इच्छा है मेरी
तो चलें जो ज़रूरी है
उसके लिए कदम उठायें
कुछ संकल्प लें
कुछ बदलाव लायें
चलें कभी किसी ज़रुरतमंद के बच्चे को पढाएं
कामगारों में अपने कभी किसी अपंग को अपनाएं
कभी किसी अनाथाश्रम से बच्चे को अपना कर
वारिस की कमी को पूरा करें
तो कभी अपने घर के बड़े - बुजुर्गों के साथ
मिल बैठकर हंस -बोलकर उनकी आँखों की नमी को दूर करें
ये जो प्रोफेशनलिज्म हम पर हो रहा है हावी
पैसे और शोहरत की तरफ भाग रहा है हर मेधावी
क्या ये प्रथा हमें हमसे दूर नहीं ले जा रही है
एक बेहद उलझे हुए मकड़जाल में नहीं फंसा रही है
बढ़ें आगे बढ़ें पर ऐसे बढ़ें
कि सबको साथ लेके चल सकें
बिना किसी को गिराए आगे बढ़ सकें
एक तारतम्य बैठा के चल सकें
एक सीमारेखा खींच कर चल सकें
अपनों के लिए जगह बनाते हुए चल सकें
और अगर किसी को सुख न दे सकें
तो कम से कम किसी को बिना दुःख दिए चल सकें
माना कि ऐसा लिखना कहना आसान है और करना कठिन
दुनिया के हालात देख कर डगमगाएंगे भी कदम
पर जब जेहन में अपने बैठा के ये बात
पूरी ईमानदारी से करेंगे जो कोशिश बदलने के हालात
तो मकसद में अपने हो सकेंगे हम कामयाब
बदलकर अपने ही कुछ खयालात
--- अर्चना टंडन
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