ज़िन्दगी मेरी कलम से



      
ज़िन्दगी मेरी कलम से


किताब मेरी कलम मेरी सोच मेरी 
मगर जो लिखती हूँ वो दुनिया से ही सीखा है 
अश्क है रश्क है या ख़ुशी के दो लफ्ज़ हैं 
ये फसानों को बयां करती रचना मेरी है


समझ समझ की  बात  है
वरना   ज़िन्दगी  भी तो इक  बिसात  है
ग़र   समझ  सकें हम इस बात  को
तो  हंस कर गुजार लेंगे  ईश्वर की इस सौगात  को 


नवाज़िश  करम  शुक्रिया  मेहरबानी 
करते  करते गुजारोगे  जो  ज़िंदगानी 
रहमतों की बारिश से जो फिर सजेगी ज़िन्दगी की धुरी 
तो  रह न जाएगी फिर  कोई भी ख्वाहिश अधूरी


ज़िन्दगी सुलझती है  या कि ज़िन्दगी  उलझती है 
वक़्त  बदलता  है  य़ा कि  वक़्त  संवरता  है  
क्या  आज  की परेशानी  है  बीते  कल  की  पशेमानी  का  सबब
या   कि  होगी  कल  की  रवानी  आज  की  अक़ीदतों  का  सबब  ...
है  खुदा   पर  जो  ईमान  अगर .. 
तो फिर क्यों हो परेशान  इस कदर


-- अर्चना 

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