वो मेरे कुछ बेहद अपने पल
वो मेरे कुछ बेहद अपने पल रोज सुबह सवेरे का सैर सपाटा और मेरी रोज की ये दिनचर्या धरती के छोर से झाँकती हुई वो सुबह की लालिमा और मन को सुकून देती मिटटी की वो सोंधी खुशबू फूलों के वो चटक रंग , और वो उड़ान भरते जीव जंतु कहीं है कोयल की कूक तो कहीं है वानरों का उत्पात दीखता है हर जगह उस ईश्वर का ही प्रताप कभी छायाचित्र लेना तो कभी दूब पर यूँ ही बैठ जाना कभी पतंगों को हवा में स्थिर तो कभी इठलाते...