खुदकुशी क्यूं

 




न खत्म करो 

इस बहुमूल्य आवरण को

न हताश हो

न निराश हो

जिस जाल ने 

फंसा रक्खा है तुम्हें

काटकर उसको

जो देखोगे चहूं ओर

तो पाओगे

आयाम हैं बहुत 

हर विधा के

और बदलना 

इनका स्वरूप है

खोज में जो निकलोगे

तो विराट इस प्रकृति के

इंद्रधनुषीय रंगों में 

खो कर रह जाओगे

पाओगे कुछ या नहीं

ये तो नहीं कह सकती

क्योंकि पाना क्या

और खोना क्या

क्योंकि सब कुछ तो इस विराटता में

अल्पकालिक ही है

आधार होते हुए भी आधारहीन है

तो फिर खोज किसकी

क्योंकि खोजने को कुछ है ही नहीं

जो है वो प्रत्यक्ष है

उसे स्वीकार जो 

बुनोगे ताना बाना

और अपने रंगों से रंगोगे

आसमान अपना

तो कई जनम 

इस जनम में ही जी जाओगे

नहीं रहेगी फिर 

कई जन्मों की ख्वाहिश

पंच तत्व में विलीन हो तब तुम

चिरकालिक पूर्णविराम पा जाओगे


डॉ अर्चना टंडन




Comments

पुनीत हांडा said…
बेहतरीन

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