शीर्षकहीन कृति

 


शब्दों के अर्थ होते हैं

शाब्दिक न करो मुझे

स्वरूपों के आकार होते हैं

आकृत न करो मुझे

समूहों के प्रकार होते हैं

गठित कर न बाँधो मुझे

निर्माण की अभिकल्पना होती है

अभिकल्पित कर स्वरूप न दो मुझे

विवरण भी एक व्याख्या है

आख्या कर स्वरूपित न करो मुझे

आदि और अंत की परिभाषाएँ होती हैं

परिभाषित न करो मुझे

जो अल्पकालिक है

जो अपना है ही नहीं

उस चोले से न आँको मुझे

भला सर्व-विद्यमान

सर्वकालिक, सार्वभौमिक

विस्तृत स्वरूप की 

कोई आख्या होती है

कोई आकार होता है

कोई प्रकार होता है

कोई दायरा होता है


डॉ अर्चना टंडन

Comments

Unknown said…
मौलिक अभिव्यक्ति
नैसर्गिक निरूपण
गूढ़, छायावादी अभिव्यंजना

Popular posts from this blog

बेशकीमती लिबास

Beyond Recognition: Discovering Peace in One's Own Existence

VIOLENCE AGAINST DOCTORS