प्रतिच्छाया
तुम मुझमें, मैं तुममें
हूँ कहीं बसती
मैं हूँ अगर धरा
तो तुम हो मेरी धुरी
तुम्हारे रूप तुम्हारे सौंदर्य में
ढूंढती हूँ मैं यौवन अपना
करती हुई बस एक कामना
कि बुलंदियाँ तुम्हारे हौसलों तले ही रहें सदा
और तुम छू सको रोमांच की हर पराकाष्ठा
क्योंकि तुम मेरी परछाईं नहीं, अगुवाई हो
इस दुखते जिस्म की अंगड़ाई हो
हर ख्वाहिश की हक़ीक़त हो तुम
मेरे हर स्वप्न की सच्चाई हो तुम
डॉ अर्चना टंडन
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