दुर्गाष्टमी के सही मायने
आज तार तार है जीर्ण-क्षीर्ण
हर लक्ष्मी हर सरस्वती और हर राधा का चीर
तो सिर्फ इसलिए कि
हर लक्ष्मी दुर्गा न हो सकी
हर राधा प्रेमिका बन सुरक्षित न रह सकी
हर सरस्वती विद्यालय न जा सकी
हर वार उनका दुर्गा को शांत करने का था
चरित्र के चीर हरण का था
राजनीती कूटनीति सब क्षमताएं लगा दीं
वो सौ थे दुर्गा अकेली
पर फिर भी नवमी मनी
वो दिन आया जब महिषासुर मारा गया
देवों के देव भी जो न कर सके
वो दुर्गा ने कर दिखाया
अगर अन्याय होता देख भी सब मौन रहेंगे
तो अन्याय को नष्ट कैसे करेंगे
दुर्गाष्टमी पर दुर्गा को नमन कैसे कर सकेंगे?
डॉ अर्चना टंडन
Comments
दुख तो इस बात का है की अन्याय को अन्याय
नहीं हक समझते हैं
So much to write on your poem
Sharad Sharma
Do write to your heart's content🙏
Best Wishes from Balwant Chauhan. KVJ 1972.
I will reply parawis e
हर लक्ष्मी ,,,, चीर
Why we are confined to these walls of our religion there were several several others Mary Magdalene and others
My point of contention is we ourselves has made these rules according to our convenience rather our convenience for our religion and their epics like either Ramayana, Mahabharta
हर राधा हर सरस्वती हर लक्ष्मी,,,
दुर्गा न बन सकी
Its not their fault it is fault of their parents,society who doesn't want to see her
rising like son(male)
Because nobody wants Durga😌
We have seen this as accepted norms in our Mahabharat and Ramayan
Bhism brought Amba Ambike Ambalike by force
Ram just accepted somebody words and abandoned Sita on others word
Dr Archana
Line by line l will write
Again fear
In short my thought is that we we all are responsible for this
We just preach but doesn't follow