बरकरार रहे जज्बा



अभी और भटको  इन राहों में
कि जो मज़ा भटकने में है
वो कहाँ मंजिलों को पाने में
कि दुःख-दर्द
ख़ुशी और उल्लास का
पल पल बदलता एहसास
ही तो सतरंगी बनाए हुए हैं  चमन को 
जो पा गए ठौर
तो कैसे अपना पाओगे  उस शून्य को
कि एकाकीपन को नकार
क्या फिर नहीं निकलना चाहोगे
नए रास्तों पर 
इक नया अरमान लिए
कुछ रंग ढूँढने
कुछ रंग भरने
कुछ कर गुजरने
कुछ पा जाने
कुछ गवां जाने 
फिर उन्ही उबड़ -खाबड़ रास्तों  पर
कि जहाँ पर हर पल
जीवन था
तड़प थी ,जुदाई थी
पर फिर भी हर पल
मिलने की इक आस थी
कुछ कर गुजरने की प्यास थी 
और हर प्यास के मिटने की 
इक आस थी 
-- अर्चना टंडन 



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