ज़लज़ला




धरती हिली

शायद ज़लज़ला था
 
कहीं तो कोहराम मचा

और कहीं दुआओं का भी असर दिखा

आज फिर इंसान को अपनी औकात का

और ईश्वरीय शक्ति का एहसास हुआ
  
कुछ मकानों में तो सिर्फ दरारें ही पड़ी
  
तो कुछ इमारतें ज़मींदोज़ हो गईं

किसी को तो मलबे में दबे हो कर भी

ज़िन्दगी हुई नसीब 

तो किसी के पूरे कुनबे की मौत को ही

न रोक पाई  कोई भी तरकीब

आज फिर ईश्वरीय माया ने
 
अपने हलके से इशारे से कुछ समझाय़ा

कि हे इंसान, 

प्रतिद्वन्दिता को परे हटा

बख्श के इंसानी खता

जी ले ज़िन्दगी को वक़्त रहते

खुशियाँ बाँट, कुछ दर्द दूसरों के वास्ते सहते

फिर न कहना

गुज़र गया कैसे हर लम्हा बिन खबर किये

अरमान रह गए कहीं सीने में ही दबे हुए

पुकार के किसी को, दिल की बात कह दे
 
किसी को पास बैठा, उसकी दिल की बात सुन ले
 
किसी को आगोश में भर

तो किसी के ममतामई स्पर्श को महसूस कर 
 
की गई गुस्ताखी की मुआफी मांग
  
तो किसी गुस्ताख को कर दे मुआफ
 
समझ ले उसका इशारा समय रहते

और समझ खुदपरस्ती और खुदगर्जी को भी

कि ज़िन्दगी यूँ ही न गुज़ार गुज़ारने के लिए

कर जा कुछ तो इस आत्मा को संवारने के लिए

इस ज़लज़ले के पीछे के सत्य को पहचान

उसके होने पर फिर कर आज इत्मीनान

क्यूंकि आज फिर उसने ये एहसास कराया है

जीवन क्षणभंगुर है ये अपने तरीके से जतलाया है


अर्चना टंडन



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