जीने की कला
रहना है मुक्त बंधनों के बंधन में रह कर उड़ना है उन्मुक्त जड़ों से जुड़कर आज़ादी ढूंढनी है साँसारिकता के सागर में गोता लगाकर प्यास बुझानी है खुद में ही रम कर वो जब साक्षात है तुझमें प्यारे तो डर त्यज उड़ान भर विचरण कर कृतज्ञ होकर -अर्चना टंडन