केंद्रित मन
कभी कलम बहती थी विकेन्द्रित मन को केंद्रित करने के लिए आज जब कोई ख्याल आता है ढल नही पाता वो किसी भी रूप में दो शब्द लिखती हूँ और विश्लेषण में खो जाती हूँ अनेकार्थता का बोध रंगों का गुबार खड़ा कर देता है जो बहा ले जाता है गुबार को, घेराव को, अंतर्वेदना को और ला देता है एक ठहराव पर ये कहना गलत होगा कि कविता अधूरी रह जाती है या मिटा दी जाती है वो तो अंदर ही अंदर कहीं झंकृत कर जाती है मन को अलंकृत कर जाती है तन को अस्पष्टता की स्पष्टता के बोध से डॉ अर्चना टंडन