मोक्ष रूपी वरदान
बिखरी बिखरी ज़िन्दगी कहूँ तुझे याकि सिमटी हुई ज़िन्दगी कहूँ चौतरफा तलाश में भटकती ज़िन्दगी कहूँ तुझे याकि स्थिर सी ज़िन्दगी कहूँ पल पल का हिसाब लेती ज़िन्दगी कहूँ तुझे याकि पलों की तलाश में भटकती ज़िन्दगी कहूँ कविताओं में भटक आत्मिक रस तलाशती ज़िन्दगी कहूँ तुझे या कैमरे में कैद होती पल पल का हिसाब रखती ज़िन्दगी कहूँ विज्ञान में कला तलाशती ज़िन्दगी कहूँ तुझे याकि कला नें विज्ञान तलाशती ज़िन्दगी कहूँ सपनों को यथार्थ में बदलती ज़िन्दगी कहूँ तुझे याकि विद्यमान को कल्पित करती ज़िन्दगी कहूँ तलाश है तू याकि ठहराव है प्राप्य है तू याकि अप्राप्य है ये तो नहीं कह सकती पर ये निश्चित है कि तुझे रंग बिरंगी ही कहूंगी स्याह सफेद नहीं क्योंकि तूने मेरे तरकश में विज्ञान, कला, गीत संगीत के असीमित रंग भर इस अल्पकालिक स्वरूप को एक इंद्रधनुषीय फ़ैलाव दे असीमित स्वरूप प्रदान किया है डॉ अर्चना टंडन ...